Monday, September 17, 2018

बारिश की कुछ यादें

Sincere thanks to Manish Pundir to help edit my grammatical errors and help me refine my Hindi to enable me heighten my expressions in this poem

बारिश की कुछ यादें


बारिश को देखकर, वो यादें लौट आती हैं ...

दोस्तों के साथ भीगने में वो मज़ा,
वो बचपन के खेल ,वो माँ की डाँट,

पापा की एक आवाज़ पर डर कर चूहा बन जाना...छिप जाना घर के किसी कोने में...

डाँट खाकर भी कभी, कहाँ सुधरते थे हम
हमेशा अपनी धुन में खुश, कहाँ पता था क्या है ग़म

जिंदगी आगे बढ़ी, सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए ...

बारिश तो आज भी वैसे ही होती है
लेकिन कुछ फर्क भी आ गया ....
वो दोस्त दूर-दूर जा बसे,
माँ भी डांटती नहीं है अब

और पापा..... 
उनकी आवाज़ अब बस मेरे दिल में सुनाई देती है